काल सर्प दोष क्या हैं ? 12 तरह के होते हैं काल सर्प योग, जानें किस स्थिति में पहुंचाता है कौनसा नुकसान!

ज्योतिष शास्त्र में राहु- केतु को सर्प की संज्ञा दी गई है. राहु सर्प का फन और केतु उसकी पूंछ है. कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हों, तो काल सर्प योग बनता है. जिस कारण संतान अवरोध, घर में रोज-रोज कलह, शारीरिक विकलांगता, मानसिक दुर्बलता, नौकरी में परेशानी आदि बनी रहती है। जाने अंजाने में इस दौरान अशुभ कामों के चलते इनके फल काफी कष्‍ट दायक हो जाते हैं। राहु के देवता काल (मृत्‍यु) हैं, इसलिये राहु की शांति के लिये कालसर्प शांति आवश्‍यक है। असल में जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में विचरण करते हैं, तब उस योग को काल सर्प योग कहा जाता है। व्‍यक्ति के भाग्‍य का निर्माण करने में राहु और केतु का महत्‍वपूर्ण योगदान रहता है।

कुछ लोगों की जन्म कुंडली में आंशिक काल सर्प योग भी होता है। एक पूर्ण काला सर्प दोष तब होता है जब सभी सात ग्रह राहू और केतू की धुरी के एक तरफ होते हैं। भले ही एक ग्रह दूसरी तरफ हो, तो ऐसी ज्योतिषीय स्थिति को आंशिक काल सर्प योग के रूप में जाना जाता है। इसमें भी कुछ हानिकारक प्रभाव हैं, लेकिन पूर्ण कार्ल सर्प योग जितने तीव्र नहीं हैं। हालांकि, यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति जिसकी कुंडली में काल सर्प योग है, वह बदकिस्मत है। इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर भिन्न होता है और यह कुंडली में उपस्थित विभिन्न योगों की उपस्थिति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राजयोग है, तो इस दोष के दोषपूर्ण प्रभाव काफी हद तक कम हो जाते हैं। किसी के काल सर्प योग के बारे में विस्तार से और इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है कि यह आपके जीवन में क्या प्रभाव लाएगा। पता लगाएँ कि क्या आपकी कुंडली में यह दोष है और यह कैसे इसकी मौजूदगी आपके जीवन को प्रभावित कर सकती है।

12 तरह के होते हैं कालसर्प योग

1- अनंत कालसर्प योग –

लग्न से सप्तम भाव तक राहु एवं केतु अथवा केतु एवं राहु के मध्य सूर्य, मंगल, शनि, शुक्र, बुध, गुरू, और चंद्रमा स्थित हों तो अनंत नामक काल सर्प योग निर्मित होता है. इस योग से ग्रस्त जातक का व्यक्तित्व एवं वैवाहिक जीवन कमजोर होता है. प्रथम व सप्तम भाव के मध्य कालसर्प योग में जन्मा व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला, निडर होता है व आत्म सम्मान को सदा ऊपर रखता है लेकिन जीवन में संघर्ष करना पड़ता है.

2- कुलिक काल सर्प योग –

द्वितीय से अष्टम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो कुलिक काल सर्प योग बनता है. इस योग से ग्रस्त जातक को धन और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

3- वासुकी काल सर्प योग –

तृतीया से नवम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो वासुकी काल सर्प योग होता है. इस योग से जातक को भाई एवं पिता की ओर परेशानी मिलती है और पराक्रम में कमी आती है.

4- शंखपाल काल सर्प योग –

चतुर्थ से दशम भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के मध्य अन्य सातों ग्रह स्थित हों, तो शंखपाल नामक काल सर्प योग बनता है. इसके कारण मातृ सुख में कमी, व्यापार में अवरोध, पद एवं प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है.

5- पद्म काल सर्प योग –

पंचम तथा एकादश भाव के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रह स्थित होने पद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इससे ग्रस्त जातक को विद्याध्ययन, संतान सुख और स्नेह संबंधों में कमी आ सकती है.

6- महापद्म काल सर्प योग –

छठवें से बारहवें भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से महापद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक को रोग, कर्ज और शत्रुओं का अधिक सामना करना पड़ सकता है.

7- तक्षका काल सर्प योग –

सप्तम से प्रथम के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो तक्षक नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक का वैवाहिक जीवन दुखमय हो सकता है. उसे साझेदारी में हानि भी हो सकती है.

8- कर्कोटक काल सर्प योग –

अष्टम भाव सें द्वितीय भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से कर्कोटक नामक कालसर्प योग निर्मित होता है. इससे ग्रस्त जातक की आयु क्षीण हो सकती है. इसके अलावा बीमारी, धन हानि या वाणी दोष संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है.

9- शंखचूड़ काल सर्प योग –

नवम एवं तृतीया भावों के बीच राहु केतु अथवा केतु राहु के बीच अन्य सातों ग्रह स्थित हो, तो शंखचूड़ नामक काल सर्प योग बनता है. इस कुयोग के कारण भाग्योदय में अवरोध, नौकरी में दिक्कतें, मुकदमेबाजी से परेशान होना पड़ सकता है.

10- घातक काल सर्प योग –

दशम तथा चतुर्थ भावों के मध्य यदि राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो घातक काल सर्प योग बनता है. यह योग व्यापार में घाटा, प्रतिष्ठा में कमी, अधिकारियों से अनबन और सुख शांति में बाधा पहुंचाता है.

11- विषधर काल सर्प योग –

ग्यारहवें से पांचवें भाव के बीच राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह बैठे हों, तो विषधर काल सर्प योग बनता है. इससे ज्ञानार्जन में रुकावट, परीक्षा में असफलता, संतान सुख में कमी और अनपेक्षित हानि आदि का सामना करना पड़ता है.

12- शेषनाग काल सर्प योग –

द्वादश से छठवें भाव में कालसर्प में जन्मे व्यक्ति की आंखें अक्सर कमजोर होती है, पढ़ाई आदि में अत्यधिक प्रयासों के बाद ही सफलता प्राप्त होती है. इसके कारण जातक अपने घर या देश से दूर रह संघर्ष करता है.

Quick Contact

पंडित राजेश व्यास जी द्वारा उज्जैन मे कालसर्प दोष निवारण, मंगल दोष भात पूजा, महामृत्युंजय जाप, नवग्रह शांति, चांडाल दोष, वास्तु दोष शांति, रुद्राभिषेक पूजा, अर्क/कुम्भ विवाह पूजा हेतु वर्ष भर लोग आते है, आप भी अगर किसी दोष से परेशान है, और अपने बिगड़े काम बनाने हेतु उज्जैन मे पूजा करना चाहते है तो अभी पंडित जी से निशुल्क परामर्श ले। क्योकि पंडित जी द्वारा सभी प्रकार की पूजाये न्यूनतम शुल्क में करवाई जाती है

 9826686217

संपर्क करें

kaal sarp dosh puja ujjain, bhasma aarti booking, ujjain mahakal bhasm aarti, mangalnath mandir ujjain,ujjain mahakal bhasm aarti online booking, live darshan mahakaleshwar, Mangalnath mandir Pooja cost, mahakaleshwar darshan online booking,